यंत्रों द्वारा कार्य सिद्धि
यंत्र कैसे काम करते हैं (How Yantras Work)
जैसा कि नाम से स्पष्ट है यंत्र किसी मशीन की तरह कार्य करते हैं | यंत्रों में अंकित आकृती, बीज मन्त्र और अंक अत्यंत जटिल गणित से सम्बन्ध रखते हैं | दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में यंत्रों का प्रचलन कुछ अधिक ही है | काला जादू करने वाले लोग भी यंत्रों का प्रयोग करते हैं |
यंत्र आपके मनोरथ को आपके इष्ट तक पहुँचाने के लिए एक कनेक्टर की तरह काम करते हैं | इसलिए स्वच्छता, विधि और मंत्रोच्चारण सब कुछ मायने रखता है |
यंत्र चाहे कोई भी हो यदि हम उसे प्रयोग कैसे करना है इसका पता नहीं होगा यंत्र एक वास्तु मात्र है | कुछ लोग यंत्र खरीद कर जेब में रख लेते हैं तो कई लोग गुल्लक में रखकर उम्मीद करते हैं कि बस अब ठीक है |
सामान्य शिष्टाचार और आवश्यक सावधानी के बिना यंत्र का फायदा होते मैंने देखा नहीं है | दूकान से खरीद कर लाया गया यंत्र क्रियाशील नहीं होता जब तक उसमे प्राण नहीं होंगे | इस लेख में के माध्यम से मैं पाठकों को उचित प्रक्रिया से अवगत करवाना चाहता हूँ कि यदि भक्ति में श्रद्धा के साथ साथ क्रिया भी होगी तो मनोरथ सिद्ध होने में देर नहीं लगेगी |
जो वास्तव में भक्ति करते हैं वे अपना कार्य सिद्ध होने के बाद भी पूजा नहीं छोड़ते जबकि अधिकतर लोग अपना काम होने के बाद फोन पर पूछते हैं कि गुरु जी अब मन्त्र पढने की आवश्यकता तो नहीं है न या फिर कुछ दिन और …
यदि आप स्वार्थी नहीं हैं और पूरी श्रद्धा के साथ प्रयोग करते हैं तो आपकी पूजा पाठ से न केवल आपके मनोरथ सिद्ध होंगे बल्कि आपके प्रयोग में कोई बाधा उपस्थित नहीं होगी |
आवश्यक है यंत्रों की प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha is essential)
यंत्र पूजा पाठ और विधि | How to worship Yantras
स्नानोपरांत तथा दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर सर्वप्रथम प्रतीक को साक्षात् इष्ट मानकर प्रणाम किया जाता है | फिर हाथ में जल लेकर हस्तं प्रक्षाल्य कहते हुए अपने हाथ धोये जाते हैं | प्रतीक को स्नान करवाने के उद्देश्य से दो बूँद जल की आवृष्टि की जाती है | धूप दीप दिखाकर फल, फूल और दक्षिणा सहित एक बार फिर नमन किया जाता है | यदि आप किसी विशेष कार्य हेतु पूजा प्रारम्भ कर रहे है तो हाथ में जल और अक्षत (अखंडित चावल के २१ दाने) लेकर मन में संकल्प किया जाता है कि मानीं अमुक कार्य के उद्देश्य से इतने दिनों तक यह पूजा अर्चना या मन्त्र पाठ प्रारम्भ कर रहा हूँ |
संकल्प के दौरान यह भाव होना चाहिए कि इस कृत्य में मेरे द्वारा कोई त्रुटी या अनियमितता नहीं होगी | फिर जल को भूमि पर छोड़ दिया जाता है |यंत्रों से जुड़ी कुछ और हैं जिनका ध्यान रखना आवश्यक है जैसे कि यंत्र की नित्य पूजा अर्चना और मन्त्र जप आवश्यक है | कार्य सिद्ध होने के पश्चात जप को निर्धारित दिनों तक जारी रखना चाहिए | उसके पश्चात यंत्र को धोकर धूप दीप, गंध आदि से यंत्र का पूजन आवश्यक है | यदि यह न हो सके तो चलते पानी में यंत्र को विसर्जित कर देना चाहिए |
यंत्र को फूलों का आसन देकर सीधा रखा जाता है | दृष्टि यंत्र के मध्य में लगाकर कुछ देर मन में उसकी कल्पना की जाती है फिर जप किया जाता है | इस तरह करने से यंत्र का पूरा प्रभाव पड़ता है |
एक घटना याद आती है कि एक बार मेरे एक मित्र के पिता हरिद्वार गए और एक संत के अनन्य भक्त हो गए | संत की सेवा सुश्रुषा की और काफी दिन वहीँ रहे | इससे प्रसन्न होकर उन महात्मा ने एक यंत्र दिया | लेकर घर आ गए | कुछ दिन यंत्र की पूजा की फिर बाद में जैसा कि होता है, नियम टूट गया | कुछ महीनों बाद सब कुछ उल्टा होने लगा | नौकरी से रिटायरमेंट लेनी पड़ी | घर में जितने लोग थे सबकी किसी न किसी तरह की दवाई चलने लगी | बड़े परेशान थे | काफी समय गुजर गया और एक दिन छोटी सी उम्र का एक संत द्वार पर आया और उसने भोजन की मांग की | भोजन के बाद जब वह जाने लगा तो जाते जाते उसने पूछ लिया कि क्या कोई ऐसी चीज घर में है जिसकी आपने कद्र नहीं की | इस पर उसी यंत्र का ध्यान आया | काफी ढूँढने पर मिला तो काफी धूल मिटटी उस पर पड़ी थी |
रत्न और यंत्र में उपयोगी क्या है ? Gemstone Vs Yantras – What is more effective
रत्नों की अपेक्षा यंत्र अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं इसमें कोई संदेह नहीं है हर रत्न हर व्यक्ति को सूट कर जाए यह आवश्यक नहीं | रत्न माफिक न आने पर नुक्सान भी कर सकते हैं परन्तु यंत्रों से नुक्सान ऐसे नहीं होता | एक समय के बाद रत्न काम करना बंद कर देते हैं जबकि यंत्र पूजा पाठ करने से सदैव जागृत रहते हैं | रत्न का लाभ केवल पहनने वाले को ही मिलता है परन्तु यंत्र का लाभ हर उस व्यक्ति को मिलता है जो भक्ति भाव से उसका पूजन करता है | रत्न एक निश्चित समय के बाद अपना प्रभाव दिखाते हैं यह बात पूरी तरह से व्यक्ति के ग्रहों की शक्ति पर निर्भर करती है जबकि यंत्रों के विषय में यह आवश्यक नहीं |
इन सब बातों के बावजूद यंत्रों की अपेक्षा रत्नों का चलन है क्योंकि पूजा पाठ के लिए समय हर किसी के पास नहीं होता | और फिर आलसी प्रकृति के व्यक्ति पूजा पाठ से दूर भागते हैं | परन्तु जिन लोगों ने यंत्रों को प्रयोग किया है वे किसी और विकल्प के बारे में नहीं सोचते | यंत्र वास्तव में दैवी शक्ति के प्रतीक हैं और उन्ही के लिए लाभदायक सिद्ध होते हैं जो पूरे समर्पण और श्रद्धा के साथ इनका प्रयोग करते हैं |
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